राजा हरिश्चंद्र की कहानी | Raja Harishchandra Ki kahani
Raja Harishchandra Ki kahani
प्रस्तावना : हम सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र नहीं बन सकते है।
क्योंकि उन जैसे महान चरित्र की तुलना आज का आधुनिक व्यक्ति नही कर सकता।
आज के दैनिक जीवन में अगर आप सत्य का पालन करोगे तो आपका जीवन सफल जरूर होगा।
सत्य बोलने वाला व्यक्ति हमेशा स्वाभिमान से अपना जीवन व्यतीत करता है।
झूठ बोलने वाला व्यक्ति अभिमान की आग में जलकर भस्म हो जाता है।
सत्य और राजा हरिश्चंद्र का नाम हमेशा साथ में लिया जाता है।
सत्य निष्ठा का पालन करने वाले महाराजा हरिश्चंद्र के अनेक प्रसंग प्रसिद्ध है।
आज हम महाराजा राजा हरिश्चंद्र की कहानी पढ़ेंगे।
सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र को एक दिन सपना आया।
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वह सपना था कि उन्होंने पूरा राजमहल महर्षि विश्वामित्र को दान दे दिया।
राजा हरिश्चंद्र ने जो वचन स्वप्न में दिया था वह वचन का उन्होंने पालन किया।
पूरा राज दरबार महर्षि विश्वामित्र को सौप दिया।
महर्षि विश्वामित्र ने कहा, “मुझे आप राज दरबार के साथ-साथ खूब सारी अशरफियाँ भी चाहिए।”
Raja Harishchandra ने कहा ऋषिवर, ” मैंने आपको सब कुछ सौंप दिया है अब मेरे पास कुछ भी नहीं है।”
महर्षि विश्वामित्र ने फिर से कहा, ” राजा हरिश्चंद्र अब आप क्या करोगे?
राजा हरिश्चंद्र ने जवाब दिया कि मेरे बीवी और बच्चों को आप के हवाले रख देता हूं।
इससे ज्यादा ऋषिवर में कुछ नहीं कर सकता।
विश्वामित्र ने कहा, मुझे और भी भेंट की आवश्यकता है सिर्फ इतने भेटों से प्रसन्न नहीं हु।
Raja Harishchandra ने कहा माननीय विश्वामित्र जी “अपने स्वयं को आपके समर्पित करता हु। “
आज से मैं आपका सेवक हूं। आपके हर एक कार्य को मैं पूरी निष्ठा और वचन के साथ पूरा करूँगा।
राजा हरिश्चंद्र आप अपना सब कुछ गवा चुके।
परिस्थिति इतनी बिगड़ चुकी थी कि उनका स्वयं पर भी अधिकार नहीं था।
Raja Harishchandra को एक मरघट शाला में कार्य दिया गया।
मृत व्यक्ति हो उनका क्रिया कर्म करना उन्हें क्रिया कर्म करने के बदले कुछ पैसे मिलते थे।
जैसे कि आप सब जानते हैं कि राजा हरिश्चंद्र अपने वचनों के पाबंद थे।
एक दिन एक स्त्री एक मृत बालक को हरिश्चंद्र के सामने लाया।
हाथ जोड़कर विनती की आप कृपया मेरे बच्चे का क्रिया कर अच्छे से पूर्ण कीजिए।
गिड़गिड़ा कर कहा, मेरे पास बिल्कुल भी पैसा नहीं है।
आप मेरे बच्चे का अंतिम संस्कार करके उसे मुक्ति दिलाए।
Raja Harishchandra ने कहा, “मैं अपने वचनों को निष्ठा से पालन करता हूं।
बिना मूल्य मैं अंतिम संस्कार नहीं कर सकता।
स्त्री बिलख बिलख कर रोने लगी राजा हरिश्चंद्र की नजर उस स्त्री और बालक पर पड़ी।
वह इससे बालक और कोई नहीं बल्कि स्वयं राजा हरिश्चंद्र की पत्नी और पुत्र था।
देखकर राजा हरिश्चंद्र को बहुत दुख हुआ। उनके पैरो तले जमीन खिसक गई।
राजा हरिश्चंद्र के सामने धर्म संकट छा गया।
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राजा हरिश्चंद्र ने जोर जोर से रोते-रोते कहा कि, “सत्य निष्ठा का पालन करना मेरा धर्म है।”
मैं आपकी कोई सहायता नहीं कर सकता।
ऐसे दुखद परिस्थिति को जब भगवान ने देखा तो उनके भी आंखों से अश्रु बहने लगे।
राजा हरिश्चंद्र की सत्य निष्ठा के कारण भगवान को स्वयं प्रकट होना पडा।
भगवान ने कहा, “मैं आपकी सत्य निष्ठा से खुश हु, आप जो भी वरदान मांगो।”
उसको मैं अवश्य पूर्ण करूंगा।
राजा हरिश्चंद्र ने प्रणाम करते हुए कहा कि आप मेरे पुत्र को जीवित कर दीजिए।
भगवान ने उनके पुत्र को जीवित कर लिया।
साथ ही साथ उनकी सारी संपत्ति राजमहल, उनकी पत्नी उनका पद प्रतिष्ठा हर एक चीज उनको वापस दिला दी।
Raja Harishchandra Ki kahani कहानी से निष्कर्ष :
satyavadi raja harishchandra ki kahani : सत्य के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति प्रारंभ में परेशानी हो सकती है ।
लेकिन अंत कभी भी बुरा नहीं हो सकता।