Dhruv tara story in hindi | ध्रुव तारा स्टोरी
ध्रुव तारा स्टोरी | Dhruv tara story in hindi
परिचय : ध्रुव तारा स्टोरी ( Dhruv Tara Story )
ध्रुव (Dhruv) की जीवनी भारतीय संस्कृति की गर्वगाथा है। उनकी तपस्या ने उन्हें ईश्वर की प्राप्ति में सफल बनाया। हम अपने बचपन में ध्रुव (Dhruv) को टीवी पर देखकर उनके साथ जुड़ते थे, और हम भी “ॐ नमः भगवते वासुदेवाय:” उच्चरण करते थे।
मुझे यह अभी भी याद है कि यह मंत्र मुझ पर गहरा प्रभाव डालता था, और आज मुझे गर्व है कि मैं आपके ब्लॉग के माध्यम से ध्रुव तारा स्टोरी आपके साथ साझा कर रहा हूँ।
“विष्णुपुराण” विष्णुपुराण यह कथा अत्यंत रोचक है। एक समय की बात है, भारतवर्ष में राजा उत्तानपाद नामक शक्तिशाली राजा थे, जिनकी दो रानियाँ सुनीति और सुरुचि थीं। बड़ी रानी सुनीति उदार, सौम्य और दयालु व्यक्तित्व की धारण करती थी।
सुनीति के एक पुत्र का नाम ध्रुव (Dhruv) था, जिसका मुख पर अद्वितीय तेज था। छोटी रानी सुरुचि भी अत्यंत सुंदर थी, लेकिन उसमें अहंकार था।
सुरुचि के एक पुत्र का नाम उत्तम था। उत्तानपाद राजा सुरुचि की सुंदरता में मोहित थे, इसलिए वह बड़ा ही अधिक समय सुरुचि के महल में ही व्यतीत करते थे। सुरुचि ने राजा को पत्नी के रूप में अपनाया।
ध्रुव तारा स्टोरी | Dhruv tara story in hindi
एक दिन ध्रुव (Dhruv) अपने पिता की गोद में खेल रहे थे, जिसे देखकर सुरुचि का क्रोध उद्धत हो गया। उन्होंने ध्रुव (Dhruv) के हाथ को खींचकर उसे गोद से उतार दिया और अपने पुत्र उत्तम को उसकी गोद में बिठा दिया।
सुरुचि ने ध्रुव (Dhruv) का अपमान करते हुए उसकी माँ सुनीति को भिखारी बताया और ध्रुव (Dhruv) से भगवान विष्णु की पूजा करके उसके अगले जन्म में राजा की गोद में जन्म लेने की सलाह दी। यह वचन ध्रुव (Dhruv) के मन में समा गया। उसने विष्णु भगवान की खोज के लिए राजमहल को त्यागकर जंगल में चला गया।
वह भगवान विष्णु की ध्यान में मग्न होते हुए उत्तरी आकाश में पहुँच गया, लेकिन पानी की कमी के कारण वह शीघ्र ही थकने लगा।
उस समय महर्षि नारद उसके पास आए और उसे पानी पिलाया, फिर उससे उसकी यात्रा का कारण पूछा। ध्रुव (Dhruv) ने कहा, “मैं भगवान विष्णु की खोज में निकला हूँ।
नारद मुनि ने उसे संबोधित करके कहा, “तुम विष्णु की ध्यान में लगो, धैर्य रखो, तुम्हें वह अवश्य मिलेगे।”
नारदजी के शब्दों से प्रेरित होकर ध्रुव (Dhruv) ने भगवान विष्णु की तपस्या आरंभ की। उसकी तपस्या इतनी कठोर थी कि उसे मां लक्ष्मी और माता पार्वती खुद आकर दर्शन देने आईं।
ध्रुव (Dhruv) की तपस्या ने इस कदर की ऊर्जा को जागृत किया कि सात ऋषियाँ भी हिल पड़ीं और उसके साथ में “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करने लगीं।
ध्रुव तारा स्टोरी | Dhruv tara story in hindi
देवराज इंद्र को ध्रुव (Dhruv) की तपस्या से चिंता होने लगी, क्योंकि वह भगवान विष्णु की प्राप्ति से वंचित होने का भय कर रहे थे। इंद्र ने तरह-तरह के उपायों से ध्रुव (Dhruv) को विचलित करने की कोशिश की, लेकिन ध्रुव (Dhruv) अपनी तपस्या में प्रतिस्थित रहा।
तब इंद्र ने उसे हिंसक प्राणियों के रूप में विचलित करने का प्रयास किया, फिर भी ध्रुव (Dhruv) अखण्ड ध्यान में थे। तब इंद्र ने उसकी माता का रूप धारण किया, लेकिन ध्रुव (Dhruv) अपनी निष्ठा में अडिग रहा।
अंत में भगवान विष्णु ने ध्रुव (Dhruv) की तपस्या को महसूस किया और उसके सामने प्रकट हुए।
विष्णु भगवान ने पूछा, “तुम मेरी खोज में इतनी कठिन तपस्या क्यों कर रहे हो? क्या चाहते हो?” ध्रुव (Dhruv) ने उत्तर दिया, “मेरी सौतेली माँ मुझे पिता की गोद में नहीं बैठने देती, और माता कहती है कि तुम पूरी श्रृष्टि के पिता हो, इसलिए मैं तुम्हारी गोद में बैठना चाहता हूँ।”
इस पर भगवान विष्णु ने ध्रुव (Dhruv) को समझाया और उसके साथ ही वह उसके ऊपर निष्कलंक स्थिति को दिखाकर उसे अभिवादन किया। ध्रुव (Dhruv) को ध्रुव (Dhruv) तारा के रूप में स्थान दिया गया, जिसे विज्ञानिक भाषा में “पोलारिस” कहा जाता है।
ध्रुव (Dhruv) तारा की दिशा से दिशा परिभ्रमण किया जाता था जब कम्पास नहीं था।
इस प्रकार, “विष्णुपुराण” कथा में ध्रुव (Dhruv) की अद्वितीय तपस्या और भगवान की कृपा का चित्रण किया गया है।
ध्रुव तारा स्टोरी | Dhruv tara story in hindi
विष्णुपुराण की कहानी बहुत रोचक है। यह कहानी भारत में एक शक्तिशाली राजा उत्तानपाद के बारे में है, जिनकी दो रानियाँ थीं – सुनीति और सुरुचि। सुनीति उदार और दयालु व्यक्तित्व की धारण करती थी, जबकि सुरुचि भी सुंदर थी पर उसमें अहंकार था। उनके पुत्रों के नाम थे ध्रुव (Dhruv) और उत्तम।
उत्तानपाद राजा सुरुचि के महल में ज्यादा समय गुजारते थे क्योंकि उन्हें उनकी सुंदरता में मोह था।
एक दिन सुरुचि ने अपने पुत्र उत्तम को राजा की गोद में बैठाने का निर्णय लिया और ध्रुव (Dhruv) को उसके सामने अपमानित किया। इस पर ध्रुव (Dhruv) ने भगवान विष्णु की पूजा करने का निर्णय लिया और जंगल में गए।
वहाँ उसने तपस्या की, परंतु पानी की कमी के कारण थक गया। महर्षि नारद ने उसे पानी पिलाया और उसकी तपस्या का कारण पूछा।
ध्रुव (Dhruv) ने उसकी माता से प्रतिष्ठा के लिए प्रार्थना की, जो उसके मन में उत्तम बनाने की थी। उसकी तपस्या ने भगवान की कृपा प्राप्त की और वह ध्रुव (Dhruv) तारा बन गए, जिसे “पोलारिस” भी कहा जाता है।
इस तरीके से, विष्णुपुराण की कहानी ने ध्रुव (Dhruv) की मेहनत और ईश्वर की कृपा का सुंदर चित्रण किया है।
ध्रुव तारा स्टोरी | Dhruv tara story in hindi कहानी से सिख :
आत्म-विश्वास: ध्रुव (Dhruv) ने अपने आत्म-विश्वास को बढ़ावा दिया और अपने मंजिल की ओर बढ़ते रहे। हमें dhruv tara story in hindi से सिखने मिलता है कि हमें खुद में आत्म-विश्वास रखना चाहिए और स्वागत करना चाहिए जब हमारे पास एक मुश्किल स्थिति हो।
समर्पितता की महत्व: ध्रुव (Dhruv) ने अपने लक्ष्य के प्रति समर्पितता दिखाई और उसके लिए सब कुछ छोड़ दिया। हमें dhruv tara story in hindi से सिखने मिलता है, कि हमें किसी भी काम में समर्पितता दिखानी चाहिए और अगर हम सही दिशा में प्रयासरत रहेंगे, तो हम सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
उत्कृष्टता की खोज: ध्रुव (Dhruv) ने हमेशा उत्कृष्टता की ओर प्रयास किया और उसने अपने आप को ऊंचाइयों तक पहुँचाने के लिए संघर्ष किया।
ध्रुव तारा की कथा से हमें यह सिखने मिलता है कि हमें हमेशा उत्कृष्टता की ओर प्रयत्नशील रहना चाहिए, चाहे राह में मुश्किलें आएं।
ईश्वर का आशीर्वाद: ध्रुव (Dhruv) की तपस्या ने उसे भगवान के आशीर्वाद से नहीं लबाया बल्कि उसने खुद की मेहनत और समर्पण से उसे प्राप्त किया।
ध्रुव तारा स्टोरी से हमें यह सिखने मिलता है, कि हमें अपने प्रयासों में जुटे रहना चाहिए और अपने कामों में पूरी मेहनत करनी चाहिए।
Dhruv tara story in hindi से सिखने मिलता है” से हमें यह सिखने को मिलता है कि समर्पण, मेहनत, संघर्ष, आत्म-विश्वास, समर्पितता, उत्कृष्टता की खोज, और ईश्वर का आशीर्वाद हमें सफलता की ओर ले जा सकते हैं।
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