सूरदास का जीवन परिचय (Surdas ka jivan parichay) :

सूरदास का जीवन परिचय (Surdas ka jivan parichay) :

भारत भूमि में अनेकों संतों ने जन्म लिया है।  सूरदास जी बहुत ही प्रसिद्ध संत के नाम से  जाने जाते हैं। 

 भारतीय संस्कृति में  सूरदास जी को महान संतों में  उपाधि दी है। सूरदास जी  कि कृष्ण भक्ति देखकर सभी उन्हें मदन मोहन नाम से बुलाया जाता था।

 सूरदास जी का जन्म 1478  मे हुआ था।  सूरदास जी के गांव का नाम था – सीही ।

महाकवि सूरदास जी के पिताजी का नाम रामदास जी  और माता जी का नाम जमुनादास था।

Surdas ka jivan parichay

  • सूरदास का बचपन – 

महाकवि सूरदास जी  ने बचपन से ही बहुत से विकट भरी परिस्थितियों का सामना किया।  ऐसा कहा जाता है कि  सूरदास जी नेत्रहीन होने के कारण  उन्हें बचपन का प्यार प्राप्त नहीं हुआ।

सूरदास जी बचपन से ही भगवान कृष्ण के भक्ति में रुचि रखा करते थे।  उन्हें बचपन से ही भगवान के प्रति बहुत  मोह व प्रेम था।

 उन्होंने बचपन में ही मात्र 5 से 6 साल की उम्र में परिवार से दूर होकर भगवान कृष्ण भक्ति का मार्गदर्शन उन्होंने पकड़ लिया। 

  वह यमुना तट में स्थित गांव घाट  पर भगवान कृष्ण की भक्ति किया करते थे

  • सूरदास की शिक्षा –

महाकवि सूरदास जी  की कम उम्र में ही वल्लभाचार्य से मुलाकात  हुई। वल्लभाचार्य का भगवान के प्रति प्रेम और ज्ञान देखकर सूरदास जी ने उन्हें अपना गुरु बना लिया।

 सूरदास जी  ने वल्लभाचार्य से भक्ति के दीक्षा ग्रहण की।

 वल्लभाचार्य ने सूरदास जी को भगवान कृष्ण भक्ति के लिए और प्रेरित किया और सच्चा मार्गदर्शन दिया।

इससे पहले वह केवल दैन्य भाव से विनय के पद रचा करते थे। उनके पदों की संख्या ‘सहस्राधिक’ कही जाती है, जिनका संग्रहित रूप ‘सूरसागर’ के नाम से काफी मशहूर  है

  • कविसूरदास का विवाह –  सूरदास जी के विवाह के बारे में  बहुत से अलग अलग बात है।

 कहीं ग्रंथों के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि  सूरदास जी ने विवाह नहीं किया था।

 उनकी जगह इस तरह भी लिखा गया है वहपद  गाकर अपने परिवार का पालन पोषण करते थे।

  • महाकवि सूरदास के गुरु –  सूरदास जी के गुरु वल्लभाचार्य थे।  वल्लभाचार्य के ही मार्गदर्शन  से कहीं सारे पदों की रचनाएं भी किया। 

Surdas ka jivan parichay

सूरदास की रचनाएं :

  • सूरसागर – Sursagar
  • सूरसारावली – Sursaravali
  • साहित्य-लहरी – Sahitya-Lahri इनमें सूरसागर, सूरसरावली, साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो के अतिरिक्त दशमस्कंध टीका, नागलीला, भागवत्, गोवर्धन लीला, सूरपचीसी, सूरसागर सार, प्राणप्यारी
  • सूरदास जी की दो प्रमुख रचनाएं : सूरसागर, सूरसरावली,

श्रीमद भगवत क्या अनुसार सूरसागर में सवा लाख पद लिखे गए  थे।

सूरसागर में कौन से  कौन से पदों का वर्णन किया गया है?

 श्री कृष्ण की बाल लीलाएं

 गोपी प्रेम

 उद्धव गोपी संवाद

 गोपी   वी र ह

सूर-सारावली

सूर-सारावली में 1107 छन्द हैं, सूरसारावली में 1107 छन्द हैं सुरसारावली रचना सूरदास जी नेने 67 वें वर्ष   मे  की थी

सूरदास के पुरस्कार: 

सूरदास जी को भारत के महाकवि का  दर्जा प्राप्त है।

आज के समय  सूरदास सम्मान मिलना भी बहुत ही गौरव की बात मानी जाती है। 

भारत में महाकवि सूरदास सम्मान पुरस्कार नाम से अवार्ड बनाया गया है।

सूरदास के अंधेपन की कहानियां :

 सूरदास जी कृष्ण भक्ति में  मग्न थे।

 वह इतने कृष्णा भक्ति में मांगने थे कि वह कुएं में गिर जाते हैं।

 वह उस कुएं में 6 दिन तक बिना खाए बिना पिए उस कुएं में ही पड़े रहते हैं।

 सूरदास जी कृष्ण भक्ति में  इतने विलीन थे कि वह 6 दिन उन्होंने हर एक सेकंड कृष्ण भक्ति में लगा दिया।

 भगवान कृष्णा ने जब सूरदास जी  जी का भक्ति प्रेम देखा तो वह साक्षात उनके समक्ष विराजमान हुए।

 उन्होंने सूरदास जी को नेत्र प्रदान किया।  उस  उस नेत्र के कारण सूरदास जी ने भगवान कृष्ण का दर्शन किया।

 सूरदास जी की भक्ति सफल हो गई।

 भगवान कृष्ण ने सूरदास जी को उस कुएं से बाहर निकाला।

 सूरदास जी ने भगवान कृष्ण से वरदान मांगा कि उन्हें फिर से नेत्रहीन बना दिया जाए।

 जब भगवान कृष्ण ने आश्चर्यचकित होकर कहा कि आप फिर से नेत्रहीन क्यों होना चाहते हो?

 सूरदास जी ने कहा कि मैं फिर से नेत्रहीन होना चाहता हूं।  क्योंकि मुझे मेरे गोपाल गिरधर के दर्शन हो चुके हैं।

 मैं अपने नेत्र में सिर्फ और सिर्फ आपके ही रखना चाहता हूं।

 मैं पूरे संसार मैं पूरे संसार में भगवती चीजों का स्वरूप नहीं देखना चाहता हूं।

 मैंने जिस तरह से आप के दर्शन किए हैं अब मैं उसी की ही कल्पना कर अपना पूरा जीवन बिताना चाहता हूं।

 मैं नहीं चाहता कि मैं सांसारिक वस्तुओं को देखकर  आपकी छवि से नहीं भटकना चाहता हूं।

 भगवान कृष्णा सूरदास जी का प्रेम और भक्ति देखकर उनकी आंखों में भी आंसू आ जाते हैं।

सूरदास की मृत्यु : ( Surdas ka jivan parichay)

सूरदास जी  जी का निधन 1583 ईस्वी सन् में हुआ था।  सुजल जी की मृत्यु गोवर्धन के पास में पारसोली नामक छोटे गांव में उन्होंने अपना देह    त्याग दिया।

महाकवि सूरदास जी जब अपना देह त्याग  करते समय भी वह कृष्ण भक्ति में लीन थे ।

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