भक्ति भाव की कहानी
परिचय :
अगर आपके भाव अच्छे हो तो आप कही पर भी भगवान की आराधना कर सकते है. इस कहानी से पता चलेगा की भगवान की पूजा अर्चना भाव से करने चाहिए.
एक बार की बात है, श्रीमद्भागवद् कथा का प्रवचन चल रहा था। व्यास जी अपने व्यासपीठ से लोगों को सकारात्मक मानसिक विचारों की महत्वपूर्णता पर बता रहे थे और उन्होंने उस संदर्भ में एक कहानी सुनाई जो मैं आपको साझा करने जा रहा हूं।
एक गुरुकुल में दो सहपाठी रहते थे, जो कि कृष्ण-सुदामा की तरह पवित्र आत्मिकता से परिपूर्ण थे। वे साथ में अध्ययन करते थे, गुरु की आज्ञाओं का पालन करते थे और आश्रम के कार्यों में भी सहायता करते थे।
एक दिन, शिवरात्रि के दिन, गुरुजी ने उन्हें एक दूसरे नगर में जाने का आदेश दिया। उन्हें एक प्राचीन सिद्धपीठ में भगवान शिव की पूजा, अभिषेक और प्रसाद वितरण करने का कार्य सौंपा गया था।
दोनों सहपाठी गुरु की आज्ञा को मानते हुए रास्ते में निकल पड़े। रास्ता लम्बा था और जंगली जानवरों से भरपूर था। पहले सहपाठी को देखकर लगता था कि उन्हें सिद्धपीठ तक पहुंचने में कठिनाइयाँ आ सकती हैं, परन्तु उन्होंने अपने मन के साथियों को प्रसन्न रखते हुए रुकने का निर्णय लिया।
जब वे आगे बढ़ने लगे, तो आकाश में बादल गरजने लगे और आसपास अंधेरा छा गया। बादलों ने आकाश को पूरी तरह ढक लिया और बारिश की आशंका थी। उस समय पहला सहपाठी ने देखा कि वृक्षों के पत्ते झूल रहे हैं, और बारिश की चपेट में आने की संकेत मिल रही है।
उनका मित्र उन्हें उस नगर में रुकने की सलाह देता है, लेकिन पहला सहपाठी ने उसके सुझाव को नकारा और कह दिया कि उन्हें तो मंदिर पहुंचकर ही रुकना है, वो भी पहली बार नहीं।
कुछ ही दूर जाने पर बादलों ने जोर-जोर से गरजना शुरू की और बारिश शुरू हो गई।
उस समय दूसरा सहपाठी ने देखा कि बारिश की चपेट बढ़ रही है और उन्हें थोड़ी देर के लिए ठहरना चाहिए। उनका मित्र भी उसकी सलाह को मानते हुए ठहरने की स्थिति में हैं।
शाम होने लगी, लेकिन बारिश नहीं रुकी। उस पहले सहपाठी ने मंदिर में पहुंच लिया था, और दूसरे सहपाठी ने वैश्या के घर पर रुकने का निर्णय लिया था। समय बीत रहा था।
पहले सहपाठी ने अपने मित्र के बारे में चिंतित होने लगा कि उसका मित्र शायद भूखा होगा, या उसने कुछ खाया होगा या नहीं। वह विचार कर उदास हो गया।
दूसरे सहपाठी ने वैश्या के घर में रुककर भगवान की पूजा की तैयारियों का चिन्तन किया, मंदिर की सुंदरता का आनंद लिया, और आश्रय दिया।
भक्ति भाव की कहानी से सिख :
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि हमें कहीं भी भावनात्मक रूप से उपस्थित रहने की क्षमता होनी चाहिए। अपने मनस्थिति को सकारात्मक और उत्तरदायित्वपूर्ण विचारों में रखकर हम आध्यात्मिक स्वास्थ्य को सही तरीके से साध सकते हैं।