गुरु और शिष्य का रिश्ता – खिलौने की महत्वपूर्ण सीख
परिचय :
गुरु और शिष्य का रिश्ता अनोखा है. कभी शिष्य गुरु की महिमा को समझ नहीं पता है पर इस दिन समझता है। उस दिन गुरु और शिष्य का रिश्ता और भी गहरा और मजबूत हो जाता है।
गुरु-शिष्य संबंध आज और कल काम दिखाई देते है। लेकिन भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य संबंध बहुत सात्विक संबंध है। इसलिए गुरु-शिष्य का संबंध पवित्र माना जाता है ।
गुरु-शिष्य का एक उदाहरण आपसे प्रसंग के रूप में शेयर कर रहा हु ।
गुरु और शिष्य का रिश्ता
किसी समय की बात है, एक गुरु और उनका शिष्य एक बहुत ही खास क्षेत्र में माहिर थे । वे खिलौने बनाने में माहिर थे। वे दिन-रात मेहनत करके खिलौने बनाते और उन्हें शाम के समय बाजार में बेच जाते।
गुरु के बनाए खिलौने और शिष्य द्वारा बनाए गए खिलौने में अंतर था – शिष्य के बनाए खिलौने अधिक मूल्यवान माने जाते थे।
इसके बावजूद भी गुरु ने उसे हमेशा यही उपदेश दिया कि वह काम में और मेहनत करें।
शिष्य ने सोचा कि शायद गुरु को मेरी खिलौने बनाने की कला पर ईर्ष्या है, इसलिए उसने एक दिन गुरु से कह दिया, “आप मेरे गुरु हैं और मैं आपका सम्मान करता हूँ। मेरे बनाए खिलौने आपके बनाए खिलौनों से अधिक मूल्यवान हैं।”
गुरु ने शिष्य की बातों का खास ध्यान नहीं दिया, बल्कि बिना किसी उत्तेजना के उसे यह समझाया, “बेटा, बीस साल पहले मुझे भी यही भूल हुई थी। मेरे गुरु के खिलौने भी मेरे खिलौनों से कम दाम में बिकते थे।
लेकिन वो मुझे हमेशा यही सिखाते रहते थे कि मैं काम में और मेहनत करूँ, अपने काम को सफाई से करूँ।”
शिष्य को उसके गुरु के शब्दों ने सोचने पर मजबूर किया। उसने अपनी गर्मी और उलझन को समझा और वह नये उत्कृष्टता की दिशा में कदम बढ़ाने का निश्चय किया।
गुरु और शिष्य का रिश्ता कहानी से सिख :
गुरु-शिष्य परंपरा भारत भूमि के महान परंपरा है।
हमें गुरु की बात को सदैव मानना आवश्यक है। गुरु की बातों को समझने में समझदार शिष्य ही समर्थ होता है। जो भी आदेश गुरु द्वारा दिए जाते हैं। वे निर्णय अत्यधिक प्रकार से हितकारी होते हैं।
हमे गुरु और शिष्य कहानी से हमें शिक्षा मिलती है की गुरु पर संदेह नहीं करना चाहिए। चाहे वह आदेश कुछ भी हो, हमें उन्हें मार्गदर्शन मानकर आगे बढ़ना चाहिए। क्योंकि यही सच्चे सफलता की दिशा में प्राप्ति का मार्ग होता है।
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